Saturday, February 6, 2021

 द राइजिंग चम्बल: एक नज़र में !!!

चम्बल: बागी, डाकू, खून, लाशें, या फिर बीहड़...! क्या यही है अभिसप्त चम्बल घाटी का परिचय ! जी नहीं, यह तो सिर्फ़ बदनाम करने की साजिश है! दरअसल चम्बल में बीहड़ है तो बागी होंगे ही ! लेकिन डाकू...? यह समझ से परे है ! अपने हक के लिए बागी होना तो समझ में आता है पर बेबजह डाकू बनना यह साजिश नहीं तो और क्या है ! क्या चम्बल की पहचान यही डाकू है ! यहाँ हम चम्बल का दूसरा रूप भी बताने की कोशिश करेंगे जैसे चम्बल घाटी में आज भी कई तपस्वी साधना में लीन है ! एशिया का मात्र लक्ष्मण - उर्मिला मन्दिर इसी चम्बल घाटी में हैं ! देश में सबसे ज्यादा सरसों पैदा करने का गौरव इसी चम्बल घाटी को है ! यहाँ का शहद भी हिंदुस्तान की जुवां का स्वाद बन चुका है ! और चंदेरी साड़ी की चमक तो विश्व विख्यात है! और न जाने क्या-क्या.....? इसके अलावा आजादी के लिए संघर्ष कौन भूल सकता है! शिक्षा की तो बात ही कुछ और है , यह हमारे बुजुर्गो से लेकर नई  पीड़ी ने बरक़रार रखा है ! 

यही सब कुछ एक साथ मिलेगा...www.therisingchambal.com पर ,तो फिर हमें सर्च कीजिए और लाइक करते रहिये!


Thursday, August 1, 2019


चित्रों में ....
अंतराष्ट्रीय पत्र दिवस (31 जुलाई ) ....और ग्रामीण पत्रकारिता विकास संस्थान ,ग्वालियर






अंतराष्ट्रीय पत्र दिवस  ....और ग्रामीण पत्रकारिता विकास संस्थान 



चिट्ठियां वर्षों बाद भी रुलाती है । हंसाती है । गुदगुदाती है । इतिहास बन जातीं है । ईमेल ,मैसेंजर,वॉटशेप और ट्विटर पर लिखे संदेश डिलीट होने को मजबूर होते है ,क्योंकि वे सिर्फ संदेश होते है और खत संदेश नही भावनाओ और संवेदनाओं में पैक दिल होता है ।
यही बात चरितार्थ करता ग्रामीण पत्रकारिता विकास संस्थान का अंतराष्ट्रीय पत्र दिवस पर आयोजित अनूठा आयोजन था " चिठिया हो तो हर कोई बांचे"। कभी कोई वक्ता फौजी मामा द्वारा लिखी चिट्ठी की इबारत सुनाते फफककर रो रहा था तो कभी सीमा पर तैनात सैनिक की चिट्ठी के इंतज़ार की व्यग्रता की कहानी सुन हर श्रोता सुबक रहा था । प्रेम पत्र के किस्से सुनकर गुदगुदाने के दृश्य संबंधों की जीवंतता में चिट्ठी की महत्ता की गवाही दे रहे थे ।
एक युवा पत्रकार शरद श्रीवास्तव द्वारा शुरू की पत्र विधा बचाने की मुहिम के तहत उन्होंने 31 जुलाई को पत्र दिवस बचाने का निर्णय लिया जिसे ग्रामीण पत्रकारिता विकास संस्थान ने अंगीकार किया ।
आठवां आयोजन ग्वालियर के ऐतिहासिक जीवाजी क्लब में हुआ । मुख्य अतिथि एपेक्स बैंक के प्रशासक अशोक सिंह और बसपा के सबसे युवा विधायक संजीव सिंह कुशवाह थे । अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार और संस्थान के अध्यक्ष देव श्रीमाली कर रहे थे । मुख्य वक्ता थे राज्यसभा टीवी के संपादक अरविंद कुमार सिंह जिन्होंने पत्र विधा और डाक टिकिट के इतिहास पर कई किताबें लिखी है । जाने माने शायर मदन मोहन दानिश । दोनों ने चिट्ठियों के इतिहास बन जाने के किस्से बताए और ऐतिहासिक चिट्ठियां भी बाँची । अन्य वक्ताओं में प्रसिद्ध कवि राज हंस सेठ , प्रसिद्ध लेखक प्रमोद भार्गव ,जाने माने व्यंग्यकार राज चड्ढा,कलाप्रेमी भाजपा के जिला महामंत्री कमल माखीजानी ,एब्नेजर स्कूल के संचालक अमित जैन के अलावा अनेक पत्रकार ,साहित्यकार,कलाकारों ने पत्र संस्मरण सुनाए और सबने माना कि इस विधा को बचाना जरूरी है । सभी ने आयोजन की सराहना की और प्रतीकात्मक रूप से एक एक पोस्ट कार्ड भी लिखा । आयोजन की दो और खास बातें थी । एक इस दिवस की शुरुआत करने वाले शरद श्रीवास्तव का अभिनंदन किया गया और दूसरी बात ये कि कार्यक्रम का संचालन सबसे वरिष्ठ पत्रकार और अच्छे कवि राकेश अचल जी द्वारा किया गया । श्रोता के रूप में भी कला,साहित्य,राजनीति,व्यापार जगत यानी हर क्षेत्र के लोग मौजूद थे ।



Friday, July 28, 2017

पानी पुरी का रियल मजा .....


The DATELINE ......weekly news paper